हिंदी ग़ज़ल  = जसवीर सिंह हलधर

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बागों के माली रखवाले , अब से नहीं जमाने से हैं !
कलियों पर कांटों के ताले , अब से नहीं जमाने से हैं !

मिली कहाँ पूरी आजादी ,खंडित हिंदुस्तान मिला है,
सरहद पर शोणित के नाले ,अब से नहीं जमाने से हैं !

वातावरण आज भारत का , घुटन भरा बतलाते हैं जो ,
विषधर असली वो ही काले , अब से नहीं जमाने से हैं !

बटवारे की पढ़ो कहानी ,लाखों जलकर बुझीं जवानी ,
हिन्दू मुस्लिम रटने वाले , अब से नहीं जमाने से हैं !

पानी दवा हवा हरियाली , पैसे वालों ने चर डाली ,
बेबस को आँखों में जाले , अब से नहीं जमाने से हैं !

मेरी वाणी तो दर्पण है , असली सूरत दिखलाएगी ,
कवियों के छंदों में भाले , अब से नहीं जमाने से हैं !

द्वापर से कलयुग तक देखा , अंधे राजाओं का लेखा ,
संसद में जीजा औ साले, अब से नहीं जमाने से हैं ।

 दागी बाघी सदा रहे हैं देता है इतिहास गवाही ,
अँधियारों में दीप उजाले ,अब से नहीं जमाने से हैं !

एक महामारी ने "हलधर" ,तंत्र यंत्र सारे परखे है ,
नेताओं के ढंग निराले ,अब से नहीं जमाने से हैं ।
= जसवीर सिंह हलधर, देहरादून