हिंदी ग़ज़ल  = जसवीर सिंह हलधर 

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संक्रमण का आक्रमण दमदार होता जा रहा है ।
वायरस यह मौत का सरदार होता जा होता है ।

लग रहा है आदमी का सृष्टि से संहार होगा ,
प्राण औषधि का खत्म भंडार होता जा रहा है ।

आदमी जो खा रहा है भोग में कीड़े मकोड़े ,
इसलिए इस रोग का अधिकार होता जा रहा है ।

योग की ताकत दिखाकर मौत को हमने हराया ,
क्यों हमारा ज्ञान यह बेकार होता जा रहा है ।

आदमियत ताक पर कमजोर अंतस हो गया है ,
साधनों में लीन अब व्यापार होता जा रहा है ।

लोक मंगल के लिए विज्ञान के रथ पर चढ़े थे ,
ज्ञान यह अब आणविक हथियार होता जा रहा है ।

खोजने को चल पड़े हम राजनीती वायरस में ,
कृत्य यह अब देश की सरकार होता जा रहा है ।

दोष आपस में लगाते कांग्रेसी भाजपाई ,
ध्येय जन कल्याण का निसार होता जा रहा है ।

क्यों दवा गिरवी पड़ी है लोभ लालच कोठरी में ,
आदमी खुद कौम का गद्दार होता जा रहा है ।

यदि सभी का साथ हो तो रोक देंगे वायरस को ,
मंत्र "हलधर" का यही लाचार होता जा रहा है ।
= जसवीर सिंह हलधर, देहरादून