हिंदी ग़ज़ल = जसवीर सिंह हलधर 

 | 
हिंदी ग़ज़ल = जसवीर सिंह हलधर

अब केंद्र की सरकार से तीखे सवाल क्यों ।
बाकी इसी आरोप से निकले बहाल क्यों ।

सबने जुटाई भीड़ थी उस इंतखाब में ,
तो भाजपा की रैलियों पर ही वबाल क्यों ।

बंगाल भू थी लाल कत्लेआम यूँ  हुआ ,
शासन था राज्यपाल का फिर भी मलाल क्यों ।

दीदी जिसे माना वही दादी है आजकल ,
झटके को भांप जाते तो होते हलाल क्यों ।

गोली दवा के नाम पे बाजार नग्न है ,
संत्रास के इस काल में पनपे दलाल क्यों ।

सारी दुकानें खुल रही हैं खानपान की ,
मदिरा के कारोबार पे रोते कलाल क्यों ।

अब चाय की चुस्की में तो इतना ही कह सका ,
"हलधर" पिये होते अगर दिखते निढाल क्यों ।
= जसवीर सिंह हलधर, देहरादून