गुरु कृपा - जया भराड़े बड़ोदकर

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गुरु चरणों का फूल बनूँ मे,

जो कली गुलाब की थी कभी,

विकट त्रासदियों को सह चुकी जो,

संकट मे ही खिलना सीखी जो,

चट्टानों सरीखी अटल रही जो,

तूफानो से भी नही डरी जो,

दुनियादारी से ढल सी गई जो,

मुरझाई घबराई,

हर एक कष्ट मे वो मुस्कायी,

गुरुभक्ति की जो शक्ति पाई,

गुरु श्रद्धा की ज्योत जलाई,

गुरू निष्ठा मे ओत-प्रोत हुई,

धन्य-धन्य जो शीश नवाई,

बड़े भाग्य जो गुरु कृपा पाई,

जनम-जनम में वो तर जाई,

जीवन का खरा सोना बन पाई,

धन्य धन्य दु: दिये बहु तेरे,

रहस्य ये वो तभी समझ पाई,

गुरु बिन सब व्यर्थ बीत गयी जो,

अंत मिले गुरु कृपा सदा सुखदाई

जया भराड़े बडोदकर, कमोथे, नवी मुंबई (महाराष्ट्र)