लालच - नीलकान्त सिंह नील

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अगला चुनाव लड़ेंगे, अपने नत्थू लाल।

पुरान दल टिकट देगी, होंगे जन के काल।।

धनिक होकर ये आया, भुला अपना तमीज।

अहंकारी होकर ये, उतार रहा कमीज।।

सौ की चाह में देगा, पैसा केवल एक।

बाद में लूटेगा ये ,सुख चैन सब अनेक।।

कर ले शौक तू पूरा , लूट स्वप्न  देखकर ।

नये-नये तरीकों से, खुश होगा हॅंस कर।।

पर इतना याद रखना,होगा पश्चाताप।

जीवन में कितना किये, थे पुण्य और पाप।।

लड़ता रहा उलफत के, लिए अपना जीवन।

कर्म से करता रहता , कर्म में कर्म नमन।।

बुरा मानो या अच्छा,पड़े नहीं कुछ फर्क।

तुमको धन की लालशा, मुझको जीवन अर्क।।

नीलकान्त सिंह नील, बेगूसराय, बिहार