गज़ल = झरना माथुर

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पैदा कर ले रस तू अपने गानों  में,

बैठा करता है तू क्यूँ नादानों में।

मुझसे मयखाने की बात ना कर,

मयखाने रहते मेरी मुस्कानो में।

क्यूँ पीते हो उस गम में अपने इतना,

आब-ए-जिन्दगानी हूँ मैं दीवानों में।

जिस मय की खातिर तू काफिर बना ,

वो मय है मेरे दिल के अरमानो में।

क्यूँ  ये सूरज फिर हुआ दीवाना "झरना ",

वो तो कब का है तेरे परवानों में।

= झरना माथुर, देहरादून