ग़ज़ल - विनोद निराश
Sep 28, 2021, 23:43 IST
| बात-बात में कुछ, हो सा गया है,
दिल जाने कहाँ, खो सा गया है।
ख्वाहिशे हरदम रहती है बेचैन,
आजकल कुछ, हो सा गया है।
मुद्दतों संभाले रखा दिल हमने,
पल भर में कहाँ, खो सा गया है।
जुदा होके न देखा मुड़के उसने ,
मुकद्दर मेरा , सो सा गया है।
करते-करते इंतज़ार सिर्फ तेरा,
जी भर सावन, रो सा गया है।
कटती है रातें निराश आँखों में ,
बीज इश्क़ का, वो बो सा गया है।
- विनोद निराश , देहरादून