ग़ज़ल = शावर भकत"भवानी"

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अनकही बातों का वो सार समझ बैठे हैं,

मेरी ख़ामोशी में इज़हार समझ बैठे हैं।

दोनों नज़रों में छुपा प्यार समझ बैठे हैं,

मानो इंकार में इकरार समझ बैठे हैं।

जाने क्यों लोग उसे प्यार समझने हैं लगे,

आप और हम जिसे तकरार समझ बैठे हैं।

हाले-दिल कहने लगी हैं ये निगाहें मेरी,

ऐसे में सब उसे अख़बार समझ बैठे हैं।

है ख्यालों से ख्यालों की मरासिम ये फ़क़त,

फिर भी हम दोनों उसे प्यार समझ बैठे हैं।

एक दूजे पे यूँ अधिकार समझते कैसे,

दोनों ही प्रेम का आधार समझ बैठे हैं।

सच कहें तो बड़े नादां हैं भवानी हम भी,

कुछ ख़्यालात  को अशआर समझ बैठे हैं।

= शावर भकत"भवानी", कोलकाता, पश्चिम बंगाल