गजल =  ऋतू गुलाटी 

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रास्ते  बंद थे, होता वो क्या  बुरा था।

लड़ने की ताकत न थी हौसलें बुलन्द थे।

आँखे खुल गयी हमारी उनके कर्म से।

वो समझे नाकारा,निकले हुनरमंद थे।

कह ना सके,  कुछ भी हम, उनको यारा।

घायल करने को दिल हमारा, लामबंद थे।

बड़ी हसरत से देखते उनकी डायरी हम।

लिखी थी कुछ शायरी बाकी कुछ छंद थे।

लेते रहे ख्याब रातो में *ऋतु *जी भरके।

जमीर ने टोका,निकले हम अंकलमंद थे।

= रीतू गुलाटी ऋतंभरा, हिसार, हरियाणा