ग़ज़ल = पारुल अग्रवाल

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खुद को समझाना इतना मुश्किल क्यूं है,
टूटकर मुस्कुराना इतना मुश्किल क्यूं है।।

जब हम खुद से ही चिड़ने लगे,
तब फिर से प्यार कर पाना इतना मुश्किल क्यूं है।

क्यूं दिल के दरवाजे अंदर से खुलते है,
कि किसी का बाहर आना इतना मुश्किल क्यूं है।

वो बांट जोहे खड़े है दिल के बाहर आज भी,
उन्हे अंदर बुलाना इतना मुश्किल क्यूं है।
= पारुल अग्रवाल, अलीगढ़