ग़जल = मनीषा जोशी

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दिल में कितनी नफरतें भरने लगा इंसान अब,
दूसरों के चैन से जलने लगा इंसान अब।

देखकर शोहरत वो उसकी, काम ऐसा कर रहा,
दोस्त से ही साजिशे करने लगा इंसान अब।

डिग्रियों की चाबियों से  नौकरी खुलती नहीं,
जंग सिस्टम को लगा कहने लगा इंसान अब।

भूख ने है पेट जकड़ा जेब में पैसे नहीं,
किस तरह बेबस  हुआ मरने लगा इंसान अब।

आज के  माहौल में हैं बच्चियां सहमी हुई,
क्या हो कब ये सोचकर डरने लगा इंसान अब।

बस दवाओं पर टिकी है अब तो इसकी जिंदगी, 
लो मिलावट की वजह गलने लगा इंसान अब।

मान किसमत, जो मिला स्वीकार करने लग गया,
क्यों यहाँ अन्याय मे पलने  लगा इंसान अब।

बस दिखावा ही दिखावा हर जगह दिखने लगा,
इक तमाशे मे मनी ढलने लगा इंसान अब।

@मनीषा जोशी मनी, नोएडा, उत्तर प्रदेश