ग़ज़ल = माधुरी द्विवेदी "मधू"
May 17, 2021, 23:12 IST
| असलहों से मारता है आज-कल,
मुद्दई आबो-हवा है आज-कल !!
शक्ल से वाकिफ़ थे हम पहले मगर,
वक़्त का चेहरा नया है आज-कल !!
देख कर प्यारी ज़मीं की दुर्दशा,
आसमां भी रो रहा है आज-कल !!
किस तरह महके हमारी ज़िन्दगी,
आदमी मुर्झा गया है आज-कल !!
सब्र का हथियार रखना साथ में,
रास्ता लड़ने लगा है आज-कल !!
दूर है बरसात का मौसम अभी,
ताज़गी मन चाहता है आज-कल !!
दिल ये रोता है "मधू" हालात पे,
फिर भी खुशियाँ बाँटता है आज-कल !!
= माधुरी द्विवेदी "मधू", गोरखपुर, उत्तर प्रदेश