ग़ज़ल =  किरण मिश्रा

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बाहर खामोशी, भीतर पसरा सन्नाटा है।

उदास दिन ,रात की आँचल में निराशा है।

खनकती हंसी पर लग गया है लाकडाउन।

सील हुई पलकें,रूठे ख्वाबो में हताशा है।

हर इंसान डरा बैठा है अपने पिंजरे में ,

कोरोना के पंजो में जिंदगी का तमाशा है।

बेबस हुई ज़िन्दगी मौत की हंसी के आगे,

एकान्त, ध्यान,योग, निरोग ही बस आशा है।

रुतबा , शोहरत,  दौलत सब बेवफा ठहरे,

ज़िन्दगी की कीमत तन्हाई का रक्कासा है।

पल भर का चूकना भी साँसों पर हो रहा भारी।

रुके कदम ही #किरण जीवन की दिलासा है।

=  किरण मिश्रा , नोएडा