ग़ज़ल = दुर्गेश अवस्थी
Updated: May 24, 2021, 22:35 IST
| सितम हम पे तुमने तो ढाए हुए हैं,
हमीं हैं जो ख़ुद को बचाए हुए हैं।
लगी चोट दिल पर तो क्यूँ रो रहे हो,
यहाँ सबने सदमे उठाए हुए हैं।
सियासत कभी तो ग़रीबों की सुध ले,
कि ये भी तो सपने सजाए हुए हैं।
ज़माना बुरा है कहूँ कैसे, इसने,
सबक़ मुझको कितने सिखाए हुए हैं।
मुसल्सल मुहब्बत की ग़ज़लें सुनाकर,
जहाँ को जहाँ हम बनाए हुए हैं।
= कवि दुर्गेश अवस्थी , दिल्ली