ग़ज़ल - डा. रश्मि दुबे
Aug 30, 2021, 23:45 IST
| खुद के लिए ज़मी औरों का आसमान था,
यह मेरी जिंदगी का बड़ा इम्तिहान था।
क़ायम रहा वजूद मेरा हर ख़ास आम में,
मेरे लिए यह सबसे बड़ा इत्मिनान था।
मुफ़लिस हो या रईस हो इंसान हो भला,
सबके लिए इंसानियत का पासवान था।
माना कि थे कठिन बड़े जीवन के रास्ते,
पर मैं भी था लड़ा बड़ा जब मेज़बान था।
होता है सरपरस्त ख़ुदा इस जहान में,
मतलब परस्त दौर में जो मेहरबान था ।
- डा. रश्मि दुबे, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)