ग़ज़ल = अशोक गुलशन
May 19, 2021, 23:19 IST
| सूरज की ऐसी रुसवाई बदली में,
मेरे छत पर धूप न आई बदली में।
पैमाने टूटे मयखाने बहक गए,
तुमने जब-जब ली अंगड़ाई बदली में।
अंधियारे में रात-रात मुनिया रोयी,
मुझको भी तब नींद न आई बदली में।
बहुत दिनों के बाद कबूतर घर आया,
आज तुम्हारी चिट्ठी आई बदली में।
जब-जब दूर हुए तुम मेरी नज़रों से,
आँख -आँख भर याद नहाई बदली में।
तुमने कैसी नज़र लगा दी 'गुलशन' को,
कुछ भी देता नहीं दिखाई बदली में।
= डॉ. अशोक पाण्डेय ' गुलशन'
उत्तरी क़ानूनगोपुरा, बहराइच (उत्तर प्रदेश)