ग़ज़ल = अनिरुद्ध कुमार
खुशी से झूम जाने का बहाना ही जरा दे दो,
जहाँ में जी सके इंसा तराना ही जरा दे दो।
बड़ी बेदर्द यह दुनिया कभी जीने नहीं देती,
रुलाया है बहुत गम ने भुलाना ही जरा दे दो।
इरादा नेक ही रखना,हवायें कह रही सबसे ,
नजर से देख लें जीभर निशाना ही जरा दे दो।
दिलों में प्यार का दरिया दुबारा रंग दिखलाये,
वही आदत जवां फिर से पुराना ही जरा दे दो।
मजा क्या है मुहब्बत में किया जिसने वही जाने,
मुहब्बत खिल उठे दिल में जमाना ही जरा दे दो।
फिजा में आज भी काबिज गुजारे प्यार के लम्हें,
खुशी या गम वही मौसम दिवाना ही जरा दे दे।
निगाहें नम नही होये, इरादा नेक 'अनि' का हो,
पकड़ के हाँथ यारी में निभाना ही जरा दे दे।
= अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड