ग़ज़ल ( हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर

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वबा की मार खाये आंकड़े आराम करते हैं ।

दवा से तिलमिलाये फेंफड़े आराम करते हैं ।

सियासत ने गढ़े मुर्दे उखाड़े हैं बहुत यारो ,

इन्हें कैसे दबाएं फावड़े आराम करते हैं ।

मिठाई से महक गायब हुई है आज पर्वों पर ,

मुहब्बत गंध वाले केवड़े आराम करते हैं ।

समंदर दर्द अपना कह रहा है रोज रो रो कर ,

खँगालो मत मुझे कुछ केकड़े आराम करते हैं ।

कहीं बछड़े बिलखते हैं कटीली बाड़ से घायल ,

गले में जो पड़े वो जेवड़े आराम करते हैं ।

हवस मसरूफ़ है ग़द्दारियों का खेल जारी है

सियासी खेल में कुछ खोपड़े आराम करते हैं ।

रियाया को लुभाने का नया जुमला कहो "हलधर",

चुनावी वायदों में झोंपड़े आराम करते हैं ।

-जसवीर सिंह हलधर देहरादून