गीतिका सृजन (वाबाला छंद) - मधु शुक्ला

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प्रीति उनकी बुलाने लगी है,

ओढ़नी लाल भाने लगी है ।

बात जब से चली है हमारी,

ब्याह के गीत गाने लगी है।

नैन दर्पण नहीं देख पाते,

छवि तुम्हारी सताने लगी है।

हो गया है पराया हृदय जब,

नींद भी दूर जाने लगी है।

घर बुलाये हमें एक न्यारा,

आस नभ में उड़ाने लगी है।

- मधु शुक्ला, आकाश गंगा नगर,

 सतना, मध्यप्रदेश,