गीत = माधुरी द्विवेदी

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लघु मिले तो दीर्घ होता,

दीर्घ का लघु में विलय है !

आसमां से और ऊँचा....

सिन्धु से गहरा प्रणय है !!

आसमां से और ऊँचा,

सिन्धु से गहरा प्रणय है....

रूप है श्रृँगार है ये,

सोम रस का धार है ये,

मौन हो जाता मुखर जब....

ये वही अद्भुत समय है !!

आसमां से और ऊँचा,

सिन्धु से गहरा प्रणय है....

ये दवा है ये दुआ है,

ज्ञान है, ईश्वर- ख़ुदा है,

प्रेम है ऐसी तपस्या....

जो प्रलय से भी अभय है !!

आसमां से और ऊँचा,

सिन्धु से गहरा प्रणय है....

सृष्टि संचालित इसी से,

और अनुशासित इसी से,

केन्द्र है ये जिन्दगी की....

बिंदुओं का भी निलय है !!

आसमां से और ऊँचा,

सिन्धु से गहरा प्रणय है....

तृप्त भी अतृप्त भी है,

त्यागता है लिप्त भी है,

ताप हर लेता हृदय का....

प्रेम वो शीतल मलय है !!

आसमां से और ऊँचा,

सिन्धु से गहरा प्रणय है....

= माधुरी द्विवेदी "मधू" गोरखपुर, उत्तर प्रदेश