गीत - जसवीर सिंह हलधर

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युगों युगों वरदान रही जो , खेती बाड़ी उसे डराये ।

अर्थी लेटा पूत धरा का , बोलो उसको कौन बचाये !!

स्वागत करते घने अँधेरे , छूट गयी पीछे रोशनियाँ !

कर्जे से पसरा सन्नाटा , रोज डराता ब्याजू बनियाँ !

आँखों के आगे छाये हैं , आँधी बरसातों के साये !।

अर्थी लेता पूत धरा का , बोलो उसको कौन बचाये !!1

गुर्राते रोजाना उस पर , जन्तु सींग नाखूनों वाले !

हाथों की रेखा को खायें , काले काले खूनी छाले !

घूम रही जंगली आंधियाँ , कैसे उनसे फसल रखाये !।

अर्थी लेटा पूत धरा का , बोलो उसको कौन बचाये !!2

तीखी काँटेदार हवायें , उसकी किस्मत से उलझी हैं !

चट्टानों से टकरा कर भी , जीवन लीला कब सुलझी है !

सरकारी फाइल में अटके , उसकी खटिया के चौपाये ।।

अर्थी लेटा पूत धरा का , बोलो उसको कौन बचाये !!3

रेतीले टीले में गुम है , उसके जीवन की रस धारा !

हीन दशा में लेटा है अब , टूटा फूटा ये ध्रुव तारा !

नंगा बदन ठिठुरता बचपन, सर्दी उसका पशुधन खाये ।।

अर्थी लेटा पूत धरा का , बोलो उसको कौन बचाये !!4

धरती ऐसा कंचन मृग है , खोजन इसको जो भी आया !

राम सरीखे देवों ने भी , मरते दम तक दुख ही पाया !

कितने "हलधर " डूब मरे हैं, कितने अब तक आग जलाये !

अर्थी लेटा पूत धरा का , बोलो उसको कौन बचाये !!5

- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून