गणपति प्रभाती - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

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छल प्रपंच अरु लोभ मद, इनका हो निस्तार।

सकल शांति सद्भाव हो, सुखमय हो संसार।।

हे गणेश सबकी करें, कुविचारों की शुद्धि।

हिंसा जिनमें व्याप्त है, गणपति भरिये बुद्धि।।

घृणा परस्पर दूर हो, मिटें जगत के क्लेश।

आतंकी जड़ से मिटें, रहे सुरक्षित देश।।

स्वामी विद्या बुद्धि के, हे लम्बोदर आप।

दया दृष्टि से आपकी, मिटते सारे ताप।।

सकल विश्व मे आपकी, आज पुनः दरकार।

करो कलुषता दूर सब, हे गणपति सरकार।।

गणपति के सानिध्य में,  बीत गये दिन-रात।

कर न सके मन भर सभी, श्री बप्पा से बात।।

बीत गये हैं नौ दिवस, चौदस आयी पास।

निकट विदाई का दिवस, होता हृदय उदास।।

उत्सव के इन नौ दिनों, चँहुदिशि मचती धूम।

नृत्य गीत में हो मगन, सब जन जाते झूम।।

जीवन से सबके सदा, विघ्न हरें गणराज।

नित अपना आशीष दें, सकल सँवारें काज।।

भारी मन से दें विदा, लंबोदर को आज।

दस दिन का यह साथ था, पुलकित हुआ समाज।।

हाथ जोड़ विनती करें, पुनः पधारें आप।

भूल चूक सब कर क्षमा, हरें सकल संताप।।

स्वागत हम सब फिर करें, मन में है यह आस।

प्रभु का हो पुनरागमन, बिखरे पुनः सुवास।।

- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा/उन्नाव