गंगा नहाना (लघु लेख) =  पूनम शर्मा स्नेहिल

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एक समय की बात है , सुमन किसी कार्य के लिए घर से दूर मुंबई जा पहुंँची । वहां वह अपने परिवार से अलग अकेली रहती थी ।अनजान शहर में सभी उसके लिए अजनबी ही थे । वहां उसके कुछ नए दोस्त बने । जिनमें से कुछ अच्छे तो कुछ मतलब परस्त भी थे । 
कोमल उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी, जबकि सविता चालाक और मतलबी थी पर फिर भी सभी साथ ही रहते थे। घर से बाहर रहने की वजह से वह लोग अक्सर किसी भी कार्य के लिए साथ में आते जाते, और सारे खर्च एक दूसरे के उठाया करते थे। कभी कोई तो कभी कोई जरूरतों को पूरा करता था।
सुमन और कोमल के बीच तो सब कुछ सामान्य चल रहा था, पर सविता जब भी कोई काम पड़ता, कोई ना कोई बहाना बनाकर टाल जाती। ना तो वह साथ जाकर कोई काम को करती थी और ना ही पैसे देती थी। कुछ समय तक तो उसके वाहनों की वजह से लोगों ने कुछ नहीं कहा, और उसकी मजबूरी समझ कर नजरअंदाज करते रहे  ।
एक दिन कोमल ने सुमन से कहा,"कोमल हम भी तो जेब खर्च के सहारे ही यहां अपना काम चला रहे हैं। समय से पहले अगर हमारे पैसे खत्म हो जाएंगे तो हम क्या करेंगे । सविता को जब भी कोई बात बोलो वह पैसों का बहाना कर जाती है, परंतु ना तो उसकी शॉपिंग में कभी कोई कमी आती है और ना ही और खर्चों में उसका बाहर आना जाना में "।
उसके शौक तो लगातार चलते ही रहते है। घर के कामों में भी वो तनिक भी हाथ नहीं बटाती है । सिर्फ बात करने से काम कितने दिन चलेगा।
 सविता सब कुछ ध्यान से सुन रही थी। उसने कहा ,"क्या कर सकते हैं दोस्त ही तो है उसे अकेले छोड़ भी तो नहीं सकता ," तभी कोमल ने कहा कि अगर हम पर कोई मुसीबत आएगी तो क्या वह उसमें हमारा साथ देगी ।
हम तो हर कदम पर उसके साथ खड़े हैं ।
वह कुछ नहीं करती । हम सब कुछ करके उसके सामने देते हैं , फिर भी उसके बहाने खत्म नहीं होते । कोमल और सविता ने विचार किया कि चलो , आज सुमन को आजमाँ कर देखते हैं।" 
सविता के कहने पर कोमल ने सुमन से कहा "सुमन मुझे कुछ जरूरी काम आ गया है मुझे कुछ पैसों की बहुत आवश्यकता है, मेरे और कोमल के पास बचे पैसे मिलाकर मेरी वह आवश्यकता पूरी नहीं हो पा रही है" क्या तुम मेरी थोड़ी सी मदद कर दोगी ? 
बचे हुए एक हफ्ते में घर खर्च और बाकी चीजें देख लोगी । हो सके तो कुछ पैसे मुझे दे दो, मेरी मदद हो जाएगी। कोमल का इतना ही बोलना था कि, सुमन  तुरंत बोला, नहीं- नहीं पैसे वैसे मेरे पास नहीं हैं । मैं तो खुद ही बड़ी मुश्किल से अपना गुजारा कर रही हूं। तुम तो सब जानती हो। नहीं तो तुम लोगों का सहारा क्यों लेती है। 
उदास मन से कोमल ने सुमन को बोला ,"सुमन अगर मुसीबत ना होती तो मैं खुद तुमसे ना कहती"। देख लो अगर कुछ हो सके तो मेरी मदद कर दो । तभी सुमन बोल पड़ी।"
नहीं-नहीं मैं वैसे भी यहां का खर्च नहीं उठा सकती । इसलिए मैंने कहीं और रहने का इंतजाम कर लिया है ।मुझे यहां से जाना पड़ेगा। यह कहते हुए वह अपना सामान पैक करने लगी।
मुसीबत की बात सुनते ही सुमन ने अपने हाथ खींच लिए । वहीं सुमन जिसके लिए कोमल और सविता हर कार्य करने के लिए खड़ी थीं। वक्त पड़ने पर सविता ने ना आव देखा न ताव और तुरंत ही वहां से अपना सामान लेकर निकल गई । 
कोमल और सुमन ने एक गहरी सांस ली,और एक दूसरे देखते हुए बोलीं, शुक्र है भगवान का," आज हम गंगा नहा लिये। नहीं तो ना जाने इसके साथ रहकर और कितने लोहे के चने चबाने पड़ते हमें समय रहते हमें इसकी नीयत का पता चल गया ।
सविता बोली , कोमल दुनियाँ में तरह- तरह के लोग हैं। मैं यह नहीं कहती कि हमें किसी की मदद नहीं करनी चाहिए । लेकिन हमें यह हमेशा याद रखना चाहिए कि अगर कोई हमारी सिधाई का फायदा उठा रहा है तो हमें अपनी चतुराई का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए। नहीं तो हम लोगों के हाथ यूं ही इस्तेमाल होते रह जाएंगे।
फिर क्या था कोमल और सविता एक दूसरे की मदद करते और अपने काम को चले जाते । वापस आकर दोनों मिल बांट कर सारे काम को खत्म करते । दिन बीते रहे और दोनों की दोस्ती और भी गहरी होती चली गई।     ©️®️पूनम शर्मा स्नेहिल, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश