डॉ. ज्योति उपाध्याय की कलम से
Updated: May 19, 2021, 23:16 IST
| सूरज ढल जाता है,
नभ में तारों को,
रोशन कर जाता है!
रंगीन नज़ारे हैं,
मन की आँखो से,
लगते सब प्यारे है!
अंदाज़ पुराने है,
तुमसे मिलने के,
अब नए बहाने है!
मिलजुल के काम करों,
जो करते उनको
ना यूँ बदनाम करों!
= डॉ. ज्योति उपाध्याय, गाजियाबाद