इमारतों के जंगल से = शिप्रा सैनी

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दे रहा कोई आवाज।

" बरसो मेघा प्यारे ",

"क्यों तुम हो नाराज?"

बारिश के मौसम में पहले,

तुम तो खूब बरसते थे।

अब लुका-छुपी-सी हमसे,

तुम करते हो क्यों आज।

बरसो मेघा प्यारे

क्यों तुम हो नाराज ?

कहीं बाढ़ का कारण बनते,

कहीं धरा को तुम तरसाते।

कहाँ गई मनमोहक बारिश,

जिस पर करते थे हम नाज ।

बरसो मेघा प्यारे,

क्यों तुम हो नाराज।

बादल देता है उत्तर ,

होकर बड़ा उदास।

तुमने ही काटे सब जंगल,

सब तेरा यह काज।

कहते फिर तुम क्यों हो?,कि

क्यों तुम हो नाराज।

हाँ मेघ हमने प्रकृति से,

किया बहुत ही छेड़छाड़।

अपने ही सब गलती का,

भुगत रहे हैं हम फल आज।

बरसो मेघा प्यारे

क्यों तुम हो नाराज।

हरी-भरी धानी धरती,

सबको ही सुंदर लगती।

खेतों में लहराए फसल,

तो भरता पेट समाज।

बरसों मेघा प्यारे ,

क्यों तुम हो नाराज।

= शिप्रा सैनी ( मौर्या), जमशेदपुर