फ्रिज (लघु कथा) - संतोष कुमार

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"इतनी उमस वाली गर्मी और फ्रिज में पानी  ठंडा नहीं हो रहा है।"

अरे ! "फ्रिज में लाइट तो जल रही है पर पानी क्यों ठंडा नहीं हो रहा ? लगता है इसकी कूलिंग सिस्टम काम नहीं कर रहा शायद" रिया बोली ।

"या फिर लगता है गैस खत्म हो गई है इसकी।"

"पिछले साल ही ठीक करवाया था अब फिर से खराब हो गया" , शोभित ने कहा ।

"कितनी बार कहा है नया फ्रिज ले लो पर नहीं, यूं ही रोते रहो" रिया फिर बोली

"पूरी सैलरी तो तुम्हारे हाथ में दे देता हूँ। सारी पगार खर्चों को पूरा करने में खर्च हो जाती है उसके बाद एक धेला नहीं बचता, तो मैं क्या करूं" शोभित ने कहा ।

"तो मैं क्या पैसा खा जाती हूं",  रिया गुस्से से बोली ।

अच्छा मै काम पर जा रहा हूं कल इस फ्रिज का कुछ करता हूं `। ये कह कर शोभित घर से बाहर चला गया ।

रिया भी घर के सभी काम कर के बाजार चली गई , शोभित जहां काम करता था वहां किसी कारण वश छूट्टी हो गई और वह वापस घर आ गया ।

घर पहुंच कर वह फ्रिज की सफाई करने लगा उसी समय उसे ऐसा कुछ मिला की वह हैरान रह गया ।

तभी बाहर से कबाड़ खरीदने वाले की आवाज आई और शोभित ने वह पुराने फ्रिज को बेच दिया ।

थोड़ी देर बाद रिया भी बाजार से वापस आ गई और फ्रिज को ना देख कर घबरा गई और बोली," कहां गया फ्रिज ?

तुम ही तो कहती थी ये बेकार और पुराना है तो मैंने कबाड़ वाले को बेच दिया ।

अरे! " ये क्या किया आपने  मै तो बरबाद हो गई मैंने उसमें अपनी सारी बचत छिपाई थी नया फ्रिज लेने के लिए । अब क्या होगा कह कर रिया रोने लगी ।

अरे ! रे !  रोओ मत मैं हूं ना कह कर रिया को गले लगा लिया।

फिर धीरे से रिया के कान में कहा, " मैंने सफाई करते समय देख लिया था और सभी रूपए निकाल लिए।

इतना भी बुद्धू  नहीं हूं ।

और पुराने फ्रिज को बेचकर जो रूपया मिला है दोनों मिलाकर नया ले लेंगे और दोनों मुस्कुराते हुए नया फ्रिज लेने बाजार चल दिए ।।

- संतोष कुमार, लखनऊ (उ० प्र०)