मछली के आंसू (लघुकथा) - अनुराधा सिंह
चमचमाती कार से उतर कर चहकती हुई प्रिया ,....मां मां....मैं आ गई..... कहती हुई सुधाराव से लिपट गई। बेटी को चहकते देख एक गर्व की अनुभूति हुई। शादी के बाद पहली बार प्रिया मायके आई थी।
उधर से गुजरते हुए पड़ोसन रमा चाची की नजर पड़ी तो लेने पहुंच गई हाल-चाल.... चमचमाती कार , गहनों से लदी प्रिया को देख पूछ ही बैठी रमा चाची... ससुराल भरा पूरा लगता है बिटिया,। हां चाची , बहुत भरा पूरा है । दामाद जी नहीं आए? नहीं चाची, वो काम के सिलसिले में विदेश गए हैं ना , कह कर प्रिया अंदर चली गई।
सुधा जी पड़ोसन से जी भर के तारीफों के पुल बांधने लगी..... मैंने बड़ी धूमधाम से शादी किया, जो दहेज मांगा वह दिया , सब है मेरी प्रिया के पास.... स्मार्ट कमाऊ पति, गाड़ी, बंगला, नौकर- चाकर ,पढ़ा-लिखा परिवार, देखा ना आपने... कितनी खुश लग रही है ,...हां देखा, ठीक है बाद में फिर आऊंगी, अभी चलती हूं।
मुंह बनाते हुए रमा चाची चली गई।
इधर प्रिया फ्रेश हो चुकी थी । बहुत प्यार से माथे को सहलाते हुए सुधा जी ने पूछा..... बेटा सब ठीक है ना ,; हां मां सब ठीक है। अचानक नए एक्वेरियम पर प्रिया की नजर पड़ी उसने पूछा,। माँ नया लिया क्या ? अरे वाह ! मां कितना सुंदर है ..प्रिया नजदीक जाकर एक्वेरियम देखने लगी..... भरे पानी में कई मछलियां तैर रही थीं, उसमें लगे छोटे पौधे और रंगीन लाइट बहुत खूबसूरत लग रहे थे। वाह मां, आपने इनके लिए तो सब कुछ इंतजाम किया है....कुछ सोचती हुई प्रिया पूछ बैठी...... मां,क्या आज तक किसी ने मछली के आंसू देखे हैं?
सुधाराव प्रिया को देखती रही और ना जाने किस सोच में डूबती चली गई...........
- अनुराधा सिंह 'अनु' , रांची, झारखंड