बुझता दीप - अर्चना लाल

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बुझता जीवन दीप, पिया जल्दी तुम आना।

हुआ खत्म उन्माद , नहीं है और ठिकाना।।

दूर गया जो मीत,   सुप्त है प्रीत हमारी।

लिख कर पाती रोज, याद करती बेचारी।।

हृद पर कर अधिकार , कहीं रूठा दीवाना-

खत्म हुआ उन्माद......

तुम बिन जीवन रोग, हृदय पीड़ा यह भारी।

रो-रो कर अब जान, और मुश्किल लाचारी।।

समझो मन की बात , प्रिये मत करो बहाना-

खत्म हुआ उन्माद....

निशा-पहर की नींद, बहे हैं आँसू बन कर।

आँसू की बरसात , कहर बनती है तन पर।।

अगध यही आघात , दूर तेरा यह जाना-

खत्म हुआ उन्माद, नहीं है और ठिकाना।।

- अर्चना लाल, जमशेदपुर