दुर्गा पच्चीसी (दोहावली) - किरण मिश्रा
नैनन की ज्योती जला, मन की बाती डार ।
माता तुम्हें रिझा रही, एक सुहागिन द्वार।।
नव दुर्गा नव रूप माँ, नवरात्रि नव नाम,
नमन करे निर्मल मना, बने बिगड़ते काम।।
कमल विराजत हाथ में, रक्त पुष्प गलमाल,
उज्ज्वल नैना चन्द्रमुख, अतीव सुशोभित भाल।।
रूप कनक सम चन्द्रमुख, करि सोलह श्रृंगार।
लाली चूनर ओढ़ के , मैय्या आयी द्वार।।
वंदन-अभिनंदन करूँ, करो पूर्ण माँ काज।
आनि विराजो हृदय में, रख लो मैय्या लाज।
ज्योति अखण्डित बार कर, सदा नवाऊँ माथ।
दर्शन दे माँ भक्त को, सिंह सवारी साथ।।
हाथ जोड़ बिनती करूँ, आयी मैं तेरे द्वार।
रख दो मेरे शीश कर, कर दो माँ उद्धार।।
तुम हो आदि, अनादि माँ, गौरी तुम शिव साज,
सती तुम्हीं हो सुरसरि, आनि बचाओ लाज!
शीतल सुखद सुहावनी, माँ का अद्भुत रूप।
कर जोड़ सम्मुख खड़े, क्या मानव क्या भूप।।
अन्न धन तुम पालती , जननी तेरा नाम।
तुम हो जग की पालिका, अन्नपूरणा काम।।
त्रयम्बक नारायणी , करुँ तेरा गुणगान।
दुर्गा दुर्ग विनाशिनी, कर दो माँ कल्याण ।।
कुंकुम-अक्षत-पुष्प-अगर , मात प्रिय अति धूप।
दीप जला पूजन करूँ माँ, तू दया का रूप।।
धूप-दीप मंगल-कलश, बारूँ माँ को नेम ।
यथा शक्ति हलवा. चना, भोग लगाऊँ प्रेम।।
दुर्गा-शप्तशती माँ का, अद्भुत है उपहार।
जो नर मन से ध्यावता, हो भवसागर पार।।
कठिन नहीं कुछ भी वहाँ, जहाँ हो माँ का वास,
मन में रखना है सदा, हमें पूर्ण विश्वास !!
यश-ज्ञान-बल-बुद्धि-मन,क्या क्या करें बखान,
माँ दुर्गा की भक्ति ही, सदा करे कल्याण!!
माँ की कृपा का सदा, दुनिया करे बखान,
नामुमकिन मुमकिन करें, इक मैय्या का ध्यान ।
धरा रूप नरसिंह का, रक्षा करि प्रहलाद!
हिरणाकुश को स्वर्ग दी, किया न्याय आबाद।
शुम्भ निशुम्भ दैत्य विकट, माँ करके संहार।
महिषासुर को मार कर, पहुँचाया सुर द्वार।।
दुख दारिद्र निवारिणी, निज करता जो जाप।
शोक वियोग निवारिणी, हर लेती हर ताप।
नवरात्र में शप्तशती, पाठ कर निराहार,
श्रवण करें मन चित्त से, भरा रहे भंडार ।।
ममता करूणा अरू दुआ, नेह मिले भरपूर,
अद्भुत तेरा रूप माँ, जैसे पूस की धूप।।
दुर्गा सप्तशती श्रवण , हरे कलुष संताप,
दूर करे संकट सदा, इक मैय्या का जाप!
कर में सोहे चूडि़याँ , लाली कुमकुम माथ,
अखन्ड करो सौभाग्य माँ, बना रहे ये साथ।
जय जय की जयकार से, गूँज उठा दरबार।
नवरात्रि, नवरूप माँ , नमन करे संसार।।
- किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा", नोएडा (उत्तर प्रदेश)