सूखे पत्ते - प्रीति आनंद

 | 
pic

सूखे पत्ते देते हैं ये शाश्वत संदेश,

वृक्ष से अलग होकर कुछ नहीं

रह जाता है  प्राणी में अवशेष

उड़  जाता  है  वह  तिनके सा,

मन  से  होकर  शिथिल  जर्जर

बिखरता है, मोती जैसे मनके का।

अस्तित्व का फिर नहीं रहता भान,

अशक्त , नीरस, रंग-रूप से दीन,

प्राणहीन का कहाँ कोई करे मान।

व्यर्थ लगे तब धरा पर रहना इसका,

माना जाये वो केवल कूड़ा-करकट

मिट्टी में मिल जाना लगे भला इसका।

मनुष्य भी परिवार रूपी वृक्ष का पत्ता,

है उसकी पहचान अस्तित्व उसी से

होकर विलग फिर रहे कैसी वो सत्ता।

- प्रीति आनंद, इंदौर, मध्य प्रदेश