दोहावली = किरण मिश्रा

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अनुपम डोरी नेह की, प्रीत पुष्प खिल जाय,
द्वेष भाव भूले मना,दिल से दिल मिल जाय।।

कल्पवृक्ष है प्रेम तन, मनवाँछित फल पाय,
जो बोये  मन आपने, ईश्वर  सदा  सहाय  ।।

वाणी मधुर, दृष्टि सुभग,जो जन सर्वहिताय,
मन निर्मल हो आपनो, जग में  मान बढ़ाय।। 

अवगुण से हम दूर रह, बने गुणों की खान,
क्रोध, लोभ, मद त्यागकर, बने श्रेष्ठ इंसान।। 

मन में आवे गर कभी, कुत्सित,कुमति विकार,
श्रेष्ठ चरित्र अपना  के, त्यागे वैर  विचार।। 
= किरण मिश्रा #स्वयंसिद्धा, नोएडा