दोहा - अनिरुद्ध कुमार

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प्रेम बंधन अजर अमर, सूई धागा जान।

एक दूसरे के बिना, समझो ये बेजान।।

धागा सूई साथ मिल, काम करे गंभीर।

कपड़ों को ये जोड़ते, सुघड़ बनाये चीर।।

संगत से कल्याण हो, जाने सकल जहान।

धागा सूई जब मिले, करते काम महान।

सूई धागा बन रहो, सहज सरल पहचान।

सेवा से जीवन सुखी, जग करता है मान।।

अतुल रूप यह प्रेम का, इक दूजे में पैठ।

बिछड़े ना दोनो कभी, बंधन बांधे ऐंठ।।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड