डॉक्टर = जया भराड़े बड़ोदकर  

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मैदान भरा था योद्दाओं का,

चहु और कोरोना छाया था,

रक्त-रक्त थी मानवता,

तड़फ रही थी इंसानियत,

उजड़ गई थी श्रद्धाभक्ति,

सुनी-सुनी तब जीने की आशा,

देवदूत बन गए थे,

जीत गए थे तुम,

जीवन में थे एक ही तुम,

तन-मन से तत्पर,

जन-जन की प्राणो की,

रक्षा मे जुट गए,

ऐसे कर्म योद्धाओ को,

शत-शत नमन है

अनवरत प्रणाम,सलाम।

 = जया भराड़े बड़ोदकर, नवी मुंबई (महाराष्ट्र)