करो योग रहो निरोग = ज्योत्सना रतूड़ी 

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विश्व में सबसे पुरातन है भारतीय संस्कृति,
भारत देश से ही हुई है योग की उत्पत्ति ,
उल्लेख है चार वेदों का शास्त्रों में हमारे,
ऋग्वेद से ही हुई है योग की निष्पत्ति।
नित निरंतर चलने वाली क्रिया है योग,
अपनाएंगे जीवन में योग तो रहेंगे निरोग,
चुस्त-दुरुस्त सुंदर सुडौल होगी जब काया, 
नहीं मिलेगा किसी उपचार से भी ऐसा संयोग।
दूर करनी है जो शरीर से अपनी सारी व्याधि,
जीवन में कभी नहीं करनी उपयोग जो औषधि,
तो रखो मन में यह संकल्प कि करेंगे, 
हम प्रतिदिन योग एक निश्चित अवधि।
ऋषि मुनि भी करते हैं योग प्राचीन समय से,
भारत को देन है यह महर्षि पतंजलि के सौजन्य से, 
समस्त विश्व भी करता है आज योग,
भारत का सिर गर्व से ऊंचा है आज इस योगा से।
योग करने से होता है मन मस्तिष्क जब निर्मल,
प्राणायाम में क्रियाएं हैं पूरक कुंभक चक्रक ये सकल,
इस बीमारी रूपी दानव को भगाना है जो,
प्राणायाम योगा को अपनाओ तुम केवल।
प्राणायाम होती है योग की आत्मा,
एकाग्रता से निकट होता है परमात्मा,
कौशल भी विकसित होता है योग से, 
अंतर्मन में करो दर्शन वह होगी दिव्यात्मा

= ज्योत्स्ना रतूड़ी *ज्योति*,  उत्तरकाशी , उत्तराखंड