धवल कुमुदिनी - किरण मिश्रा
Aug 20, 2021, 23:20 IST
| सुनो चाँद !
तुमसे मेरी पहचान
अधूरी तो नहीं,
फिर भी ये दूरी
इक लम्बी आह,
और तुम
समा जाते हो साँसों में।
नस-नस में।
रेंगने लगते हो।
तुम्हारा मधुर अहसास
कुलबुलाने लगता है,
प्रेम का स्नेहिल कीड़ा बन
जिस्म.से रूह तक में।
पलकें बन्द
बस तुम..हम हो जाते हैं ,
और
मन लगा आता है गोते
जलपरी बन
तुम्हारी यादों के अगाध सागर में.....।
और मैं खिल उठती हूँ
कुछ ही पलों में
अवगाहन कर अपनी हरित
नाल-तन्तुओं को,
तुम्हारे गहरे
अगाध प्रेम में रोप !
अल सुबह
सरोवर के ठहरे जल में
उत्तान मुखी
मुस्कुराती शबनमी,शीतल,
"धवल कुमुदिनी" की सी...!
- किरण मिश्रा 'स्वयंसिद्धा' , नोएडा