धरा की बेटियां - रूबी गुप्ता

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बेटियाँ , धरा  की बेटियाँ,

हाँ  ये  बेटियाँ, धरा की बेटियां।

 

सुनीता कभी ,कभी इन्दिरा,    

और सरोजनी स्वर कोकिला ,

बलिदानी  बन  पन्ना  सी वो ,

देती रहीं है कुर्बानियां।

बेटियां, धरा की बेटियां।

हाँ  बेटियाँ, धरा की बेटियां। 

अहिल्या सीता पद्मावती,

सावित्री सी बनती हैं सती,

पृथ्वी के कण-कण में  बसी,

जीवन की बन संचारिका

बेटियाँ, धरा की बेटियां।

हाँ बेटियाँ ,धरा की बेटियाँ।

बनती कल्पना नभ भेद कर ,

बछेन्द्री बनती छूती शिखर ,

नित कीर्तिमान गढ़ती निखर।

हर क्षेत्र  में लहराती ध्वजा

बेटियाँ , धरा की बेटियाँ।

हाँ बेटियाँ धरा की बेटियाँ।

बनती मीरा कभी राधिका ,

कभी काली सम संहारिका |

तन मन समरपिता हैं ये ,

पाले रूह में  संस्कृतियाँ

बेटियाँधरा की बेटियां।

हाँ बेटियाँ, धरा की बेटियाँ।

- रूबी गुप्ता, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश, भारत