आँचल सजा रही हो = कालिका प्रसाद सेमवाल
आज सपन दिखा कि
तुम आ रही हो रुपसी,
नूपुर छन -छन बजा रही हो
आंचल सजा रहा हो।
प्यार की मधुर पीर हो तुम,
मेरे नयन की ज्योति हो तुम।
गीत का सावन उमड़ता,
प्रीति का शुभ स्वप्न पलता।
चाँद सी तुम हँस रही हो,
शून्य उर में धँस रही हो।
मैं बँधा तुमसे सुहागिन,
स्नेह की जंजीर हो तुम।
आ सको तो पास आओ,
कनखियों से मत बुलाओ।
उड़ रहा है चारु अंच्चल,
क्या नहीं मानस अचंचल।
बुझ चुके अरमान धूमिल,
भाग्य-हित, तकदीर हो तुम।
पट तुम्हारा आसमानी,
खिल रही कोमल जवानी।
राग की किरणें सुहानी,
है अधर -आसव नूरानी।
धँस रही हो तुम हृदय में,
भाव की तस्वीर हो तुम।
हँस रही हो क्यों मनचली,
जा रही हो क्यों उछलती।
फेर दो निज दृष्टि कोमल,
बन सकेगी प्यार संबल।
जो न चुभकर फिर निकलता,
वह विषमतम तीर हो तुम।
- कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार, रुद्रप्रयाग उत्तराखंड