कोरोना - मुकेश  तिवारी

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पैथालॉजी  से  कागजों  में तेरी,

तस्वीर  जन्म  लेती है, कोरोना।

कैसें  आया,  क्योँ ,  कब आया,

तू    बेवजह   आँखे   भीगो  ना।

खराश  मौसम   बदलने की भी,

नीँद उड़ा  जाती है  , आजकल।

दूर कर  तूने  सारे रिश्तों से हमें,

डरा रखा है , महीनों  से हरपल।

तेरी  चित्कार लील गई  निवाले,

अब तो कह दे  खुद से चलो ना।

कितनी सांसे  लुटी  हिसाब नही,

अदृश्य ये खामोशी आवाज नही।

वर्ष कर चुके नाम तेरे 2021 भी,

बारिश मे घुली देखी तेरी तपिश।

रहम  कर  थोड़ा  मत जल इतना,

इक  बार तो  कह दे अब डरो ना।

पैथालॉजी   से   कागजों  में  तेरी,

तस्वीर  जन्म   लेती  है ,  कोरोना।

कैसें   आया,   क्योँ  , कब  आया,

तू     बेवजह    आँखे    भीगो  ना।

- मुकेश  तिवारी ( वशिष्ठ) इन्दौर, मध्य प्रदेश