बाल कविता =  अनिरुद्ध कुमार

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करामात दिखाये गिलहरी, कितना सुंदर रंग,
बाग बगीचा दौड़ लगाये,  देख देख सब दंग।

पेड़ों पर फट से चढ़ जाती, तनिक नहीं विलंब,
झट से ऊपर, फट से नीचे, मन को दे आनंद।

तोड़ फलों को चट कर जाती, मनभावन है ढ़ंग।
कभी कभी आवाज लगाती, खींचे ध्यान तुरंत।

पंजा इसका मानव जैसा, चूहे जैसा अंग,
आगे पीछे आये जाये, लगती मस्त मलंग।

घर आंगन में जब ये दिखती, बच्चें करते तंग,
जब जब इसे पकड़ना चाहा, भागे जगे उमंग।

तन पर काली धारी शोभे, जैसे लहर तरंग,
कूद कूद कर खाती दाना, सबको लगे पसंद।

उबे मन तो मिले सहारा, इन जीवों के संग,
कैसे कैसे जीव बनाये, मनभावन अवलंब।
=  अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड