चन्द शे'अर = विनोद निराश
जब नज़र का अपनी ही , मैंने इन्तिख़ाब लिखा ,
तुझे कभी चाँद, कभी चांदनी, कभी गुलाब लिखा।
तुमसे इश्क़ का ख्वाब सा देखा था ,
आंगने-दिल में महताब सा देखा था ।
जख्म-ए-दिल फिर जवां हो गया ,
कल ख्वाब में वो मेहरबां हो गया।
जख्मे-यार है , हिज़्रे-यार है ,
हर बात में , फ़िक्रे -यार है।
वो बेशक न करे याद मुझे ,
मेरी हर बात में ज़िक्रे-यार है।
दिल से उनकी याद, निकलने नहीं देते ,
ख्वाहिशों को हम अपनी, मरने नहीं देते।
ये सोच के मुहब्बत की थी, तन्हाई से निजात मिले,
ये न सोचा था कि, उम्र भर की तन्हाई साथ मिले।
वो मेरी किस्मत का, टूटता हुआ तारा बन गया ,
कल तक था मेरा, आज गैर का सहारा बन गया।
विदा होते हुए उसने पूछा, मुझ बिन रह लोगे ,
मैंने भी गफलत में कह दिया, जुदाई सह लोगे।
राह तकते रहे तेरे जाने के बाद, यही सोचकर ,
लौट आओगे एक दिन, गीले-शिकवे भूलकर।
बाद बिछुड़ने के भी , किसी की फिक्र करना,
इतना आसां नहीं होता, किसी से इश्क़ करना।
वादे पे तेरे हर बार, हम वादा कर आये ,
ज़िंदगी तो कट गई, बस उम्र गुजर जाये।
= विनोद निराश , देहरादून (बृहस्पतिवार 01/07/2021)
(जीवन संगिनी के अवतरण दिवस पर मुख्तसर से जज़्बात, हालाँकि आज संगिनी संग नहीं है, उनका लोकगमन हो चुका।)