छम-छम बरसे है नीर सखी  = किरण मिश्रा 

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लिखूँ कैसे  पाती,  प्रीत सखी,

छम छम बरसे है, नीर सखी ।।

यादें  बिजुरी सी चमक  रहीं,

आँखें  टेसू  सी  दहक  रही,

अब कैसे सहूँ हिय, पीर सखी।

छम छम बरसे है, नीर सखी ।।

साँसें महुवा सी  महक रहीं,

धड़कन पुरवा सी बहक रही !

अमुवा पर कोयल चहक रही

मनवा न धरे अब, धीर सखी ।

छम छम बरसे है, नीर सखी।।

अलको में बदरा घिरि आये,

पलकों से कजरा  बहि जाये,

मन सूना सावन तरसाये,

जने कौन देश,अब मीत सखी।।

लिखूँ कैसे पाती, प्रीत सखी,

छम छम बरसे है, नीर सखी ।।

= किरणमिश्रा "स्वयंसिद्धा", नोएडा