कुर्सी - निहारिका झा

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कुर्सी की महिमा है न्यारी,

बना देती  सबको मतवारी,

जिसको मिल जाये कुर्सी,

वो भूले दुनिया  ये सारी।

पाने को इसकी चाहत में,

वो लगा रहा है जोड़ तोड़,

ग़र मिल जाती कुर्सी,

वो चिपके लगा के फेविकोल।

बनी रहे उसकी कुर्सी

वो करता सबकी मिजाजपुर्सी,

भले खत्म हो जाये जमीर,

पर बची रहे उसकी यह कुर्सी।

- निहारिका झा,खैरागढराज.  (36गढ़)