किताबी नशा - रूबी गुप्ता
Nov 24, 2021, 22:28 IST
| खुद को तलाशने में हम कुछ इस कदर खोये है।
रात और दिन क्या कोई एक पल ना सोयें है।
यू तो अपने नशे में धुत है यह सारा जहाँ यारो।
मगर नशा हम तलक पाने को लोग बरसों तक रोये है।
हम किताबों में और किताबे हममें खो गयी।
हमें सुलाते सुलाते हर रात माँ थक कर सो गयी।
हमे मिली शुकून उस हद तक इन किताबों में।
कि जन्म जन्मान्तर तक की दोस्ती इन्ही से हो गयी।
यह हर बार सिर्फ और सिर्फ सच बोलती है।
सच और झूठ की कीमत सच सच मोलती है।
कितना भी छुपा ले कोई राजे-दिल हमसे।
यह निडर होकर जमाने की हर राज खोलती है।
- रूबी गुप्ता, कुशीनगर , उत्तर प्रदेश , भारत