पंछी की वेदना - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी
Nov 25, 2021, 22:37 IST
| जिंदगी की बेड़ियों में, कसमसाते क्यों?
पंख मन के फड़फड़ाना, भूल जाते क्यों?
जो अलस तन में भरा है, वो नहीं अच्छा,
एक निष्क्रिय ज़िंदगी, आखिर बिताते क्यों?
बेखयाली में चुनें यदि, राह जीवन की,
चोट जब लगती तुम्हें तो, बिलबिलाते क्यों?
झेलते हर एक पग, रुसवाईयाँ कितनी,
पीर को पीकर हमेशा, गम भुलाते क्यों?
नींद कोसों दूर है, पलकें नहीं मुँदतीं,
स्वप्न नूतन फिर नयन में, कुलबुलाते क्यों?
ज़ख्म पर मरहम लगाने, वो नहीं बढ़ते,
दर्द दिल का बेरहम को, फिर सुनाते क्यों?
एक रत्ती जब नहीं, परवाह वो करते,
दूर मन से यदि करें, तो याद आते क्यों?
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा/उन्नाव