भावना - आशा पराशर

 | 
pic

सपाट भावहीन चेहरे,

मन के विचारों पर तर्क के पहरे,

कुछ लोग मन में उठे भाव छुपा लेते हैं,

भावनाओं को व्यक्त नहीं करते,

कहीं दूसरा उनके मन को पढ ले,

आंख मिलाने से हैं डरते।

सिर्फ अपने अहं से लिपटे,

असुरक्षा की भावना में सिमटे,

दिल कहता है यह अच्छा है,

पर जु़बां से नहीं कहते,

दिल के दरवाजे खिड़कियां खोल दो,

अपने लिये जो सुनना चाहते हो,

वो किसी और के लिये भी बोल दो।

लाख मुस्कुराया करें, सिर हिलाया करें,

अभिव्यक्ति अगर,

शब्द का लिबास नहीं पहनेगी,

वो बात नहीं.बनेगी,

जब तक शब्द मुखर होंगे,

शब्दों में अक्षर होंगे,

आपकी सराहना,

दूसरों के मन में उल्लास भरेगी।

- आशा पराशर, जयपुर (राजस्थान)