भजन = ज्योत्सना रतूड़ी

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हे मात सुनो मेरी विनती,

है पीर पड़ी माँ तू हरती।

अब दूर करो मां ये  विपदा,

सब को अब दो मात संपदा।

 माँ लाज रखो अब तुम मेरी,

आ गयी  हूं माँ  शरण तेरी।

 भव सागर से तुम पार करो,

 हर लो दु:ख मेंरे धीर धरो ।

मां मुझे आस तेरी भारी,

मैं भी तुझसी हूं एक नारी ।

अब खोल दो विशाल ये नैन,

कट गयी दु:खों भरी वो रैन।

= ज्योत्स्ना रतूड़ी ज्योति

 उत्तरकाशी, उत्तराखंड