मोलभाव (लघुकथा) - डा.अंजु लता सिंह

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- भाभी! मेरे मरद ने सब्जी बेचने का काम बंद कर दिया है। मालिक के बंगले के गेट पर ही ठेली पर वह कपड़े प्रेस किया करेगा अब। हमारे मालिक बहुत नेकदिल इंसान हैं। चौकीदार का वेतन भी देते रहेंगे मेरे मरद को बिजली, पानी, कमरे का किराया पहले से ही फ्री है।

-हम मां बेटी अब काॅलोनी में घर-घर जाकर साग-सब्जी भी बेच लिया करेंगे। आज भी कुछ साग- सब्जियां लाई हूँ।

सिर पर से टोकरा उतार कर घर में सफाई करने वाली सेविका बसंती बोली।

-चल ! कृष्णा ! तू ही कर ले सफाई अंदर जाकर। आज मेरी बहन सपरिवार आने वाली है।

नीता उसकी बेटी से बोली।

-तू बोल अब..ये पालक की चार गड्डी कित्ते की हैं ? चार ही नींबू और एक पाव अदरक।

-एक गड्डी आठ रूपए की ,एक नींबू चार रूपए का और अदरक हुई तीस की पाव।

हो गए जी कुल अठहत्तर रूपए।

-चल हट ! आज पहले दिन ही लूटेगी क्या?

-आप ही बोलिये फिर..

-सबमें दो-दो रूपये कम कर और दे सब।

-एक एक कम कर लो।

-देती है कि नहीं ?

-ले पकड़ साठ रूपए।

जैसे ही बसंती ने पैसे लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाए, चक्कर खाकर वहीं फर्श पर गिर पड़ी। उसे नीता ने संभाला और उठाते हुए पास पड़ी खाट पर बैठा दिया। फिर फुर्ती से दौड़कर किचन से पानी का गिलास ले आई।

- हुआ क्या तुझे?

- दो दिन से कुछ खाया नहीं भाभी।

-ओह ! तुम लोग भी...

फुर्ती से रसोई के अंदर जाकर उसने जल्दी-जल्दी पालक के कुछ  गरमा-गरम पकोड़े तले, एक कप अदरक की चाय बनाई और थाली में रखकर सास के साथ लाकर उसके सामने रख दिये।

खा-पीकर दुआएं देती हुई बसंती अपना टोकरा उठाकर कालोनी के अगले घर की ओर चल दी।

बसंती के जाने के बाद क्यारी से तुलसी की पत्तियां तोड़ती हुई सासु मां ने नीता से पूछ ही लिया-

- ऐं री बहू! इतने भाव करे तैने साग-भाजी के लिये उससे और ऊपर से महारानी के लिये गरमागरम पकोड़े, चाय भी दी। कुछ समझ सी ना आई तेरी जे कारस्तानी।

-अरी अम्मां! बिजनेस में मोलभाव करना जरूरी होवे है, उसका गहरा प्रभाव होता है और स्वभाव में भाव भी होना जरूरी है।

   बहू का जवाब सुनकर अम्मां जी की आंखें चमकने लगीं।

- डा.अंजु लता सिंह, नई दिल्ली