पृथ्वी का कर वंदन - अनिरुद्ध कुमार
Sep 7, 2021, 23:22 IST
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फूल कली का रूप निखरे , मन मोहे सुंदरता।
टहनी लिपटे झाड़ कटीले, संकट सारे हरता।
सुंदरता मन मोहित कर दे,यह जीवन सुख पाये।
देख मनोरम खेल अनूठा, मन हर्षित हो जाये।।
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बागों में कलियाँ इतरायें, जागृत हो अभिलाषा।
भाव सरल मन आनंदित, बोले मनहर भाषा।।
सज के नूतन परिधानों में, लगता रूप तराशा।
आकर्षित मनभावन जीवन, देखे रोज तमाशा।।
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पंछी आकर साँझ सकारे, सुंदर राग सुनाये।
भौंरा मदमाते इठलाये, गीत मिलन के गाये।
पवन बसंती मन लहराये, हर जीवन को भाता।
जड़ चेतन मुस्काये गाये, जीवन जोर लगाता।
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अरुणिम लाली साँझ सकारे, नव उर्जा बिखराये।
जागृत मन अंजोर अनूठा, हर पल धुन में गाये।।
पुलकित हो मानव बलखाये, जग लागे है कुंदन।
चेतन प्राणी इत उत धाये, पृथ्वी का कर वंदन।।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड