नजर आते मिलाने को - अनिरुद्ध कुमार
Sep 12, 2021, 11:41 IST
| हुआ क्या इस जमाने को,
बचा क्या अब बताने को।
शराफत की अदा बदली,
नहीं कुछ भी दिखाने को।
वफा बैठी सिसकती रब,
गुजारिश क्या करे कोई।
किसे फुर्सत यहाँ बोलो,
बतायें क्या दीवाने को।
गुजर होती झटकते सिर,
हँसी आती कहें किन से।
जफ़ा से ये हवा घायल,
सदा आती रुलाने को।
सभी नजरें बिछाये है,
हमेशा दिल दुखाये है।
रुलाये गम जहाँ बेदम,
कहाँ कोई, मनाने को।
सकूं पाते नजर आते,
जरा आके हँसा जाते।
खता जो भी, बता देते,
यहाँ क्या है छुपाने को।
गुजारिश है, चले आते,
जरा दिल की सुना पाते।
तड़पते हम, जिलाते वो,
कहाँ मौका जताने को।
समझ लेते, हमारा गम,
कलेजे पर लगे मरहम।
नहीं'अनि' से, गिले शिकवे,
नजर आते मिलाने को।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड