अंहकार = दीपक राही

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एक सत्ताधारी को था अंहकार
हर जीत का जिसे रहता इंतजार,
छल से हो या बल से, 
ऐसा था उसका अंहकार,
एक सत्ताधारी को था अंहकार।

हर झूठ को है वह सच बतलाता,
जनता को है दिन में सपने दिखलाता,
अपनी जीत का था उसे खुमार,
ऐसा था उसका अंहकार,
एक सत्ताधारी को था अंहकार।

गली गली मचाया जिसने छोर,
दूसरों को बतलाया उसने चोर,
अपने भाषणों से सबको दिया झकझोर,
ऐसा था उसका अंहकार,
एक सत्ताधारी को था अंहकार।

मुश्किल परिस्थितियों में लड़ना सिखाता,
कठिन सवालों को है पहले सुलझाता,
करता हमेशा अपने मन की बात,
ऐसा था उसका अंहकार,
एक सत्ताधारी को था अंहकार।

खुद को है वह अवतार समझता,
हर बार है वह अपना भेष बदलता,
जीत से ही उसका मन मचलता,
ऐसा था उसका अंहकार,
एक सत्ताधारी को था अंहकार।

भूल थी उसकी जो उसने बतलाया,
लोगों को जिसने बेवकूफ बनाया,
अब ना चलने देंगे उसकी कोई चाल,
जनता मिलकर ही तोड़ेंगी,
उसकी जीत का अहंकार,
एक सत्ताधारी को था जीत का अंहकार।
= दीपक राही, आर.एस.पुरा, (जम्मू-कश्मीर)